आचार्य चाणक्य ने कहा था की, कोई राष्ट्र तब तक पराजित नहीं होता जबतक वह अपने संस्कृति व मूल्यों की रक्षा कर पाता है I यह सौभाग्य रहा है की पांच सौ साल की पराधीनता के बाद भी हम अपनी गौरवशाली संस्कृति, सभ्यता और मूल्यों को एक सीमा तक सुरक्षित रखने में सफल रहे हैं I मुग़लों और अंग्रेजों ने जो किया वो अपेक्षित था, किन्तु स्वतंत्र भारत में ये कौन सी राजनैतिक विचारधारा, पत्रकारों, इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों का गठजोड़ है जो हमारी संस्कृति पर लगातार आक्रामक है तथा साथ ही साथ प्रत्येक प्रगति को भी रोकने के लिए प्रयासरत है? हमारी संस्कृति और सभ्यता को मिटाने की कोशिश में इस गठजोड़ ने हमारे गौरवशाली इतिहास तक को बदलने का अक्षम्य अपराध किया है I

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भारत के कुछ दरबारी इतिहासकारों ने राजनैतिक और तथाकथित बुद्धिजीवियों के गठजोड़ से एक षणयंत्र के अंतर्गत भारत की सभी कलाकृतियों और शिल्पकारी को खानाबदोश मुग़लों के नाम कर दिया तथा भारत को यही पढ़ाया जाने लगा की भारत में शिल्पकारी मुग़लों की देन है l

आज पीएमपत्रिका ये प्रश्न उठाता है की, जो मुग़ल अपने देश में कपड़े के टेंट में रहते थे वो भारत आकर कैसे इतने उत्कृष्ट शिल्पकार हो गए? क्यों किसी मुग़ल ने कभी भी भारत जैसा उत्कृष्ट शिल्पकारी से भरा एक भी भवन अपने देश में नहीं बनवाया ? अब समय आ गया है की भारत के गौरवशाली इतिहास को पुनः लिखा जाये तथा इसको बदलने वालों का अपराध तय किया जाये l

'पीएमपत्रिका' एक प्रयास है इस गठजोड़ के सामने दर्पण रखने का, ताकि ये अपना मुख देखें ना देखें लेकिन भारत का सनातन समाज इस दर्पण में इन राष्ट्रद्रोहियों का वास्तविक चेहरा अवश्य देख पाए I

'पीएमपत्रिका' को आपका अधिक से अधिक समर्थन मिले ऐसी अपेक्षा के साथ वेबसाइट पर आगमन के लिए आप का कोटि कोटि धन्यवाद l

भगवा आतंकवाद, हिन्दू आतंकवाद, हिन्दू तालिबान, असहिष्णु भारत . . . जैसे शब्द आपने धर्मनिरपेक्ष प्रजाति के मुंह से अनेकों बार सुने होंगे l कांची के शंकराचार्य ब्रह्मलीन जयेंद्र सरस्वती और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को एक षड़यंत्र के अंतर्गत जेल में डाल कर संत समाज को अपमानित करने का प्रयास भी देखा होगा l कर्नल पुरोहित की प्रताड़ना, सेनाध्यक्ष को सड़क का गुंडा कहना, सर्जिकल स्ट्राइक पर प्रश्नचिन्ह लगाना, सेना द्वारा तख्ता पलट के प्रयास का असत्य समाचार चलाना एक षड्यंत्र था, भारत की गौरवशाली सेना के मनोबल को तोड़ने का l

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अत्याचार की चरमसीमा ये रही की साध्वी प्रज्ञा ठाकुर अपने पैरों पर चल कर पुलिस के पास गयीं और आठ साल बाद व्हील चेयर पर बाहर निकलीं l कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को तो मोहरा बनाया गया ताकि सनातन समाज को आतंकवादी और भारत भूमि को आतंक की जननी साबित करके इस्लाम और ईसाईयत के समकक्ष खड़ा करके एक तीर से दो निशाने लगाये जा सके – पहला, स्थापित किया जा सके की आतंकवाद से कोई भी धर्म अछूता नहीं है l दूसरा, इसके सहारे सभी राष्ट्रवादी संगठनों, खासकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार, को निशाने पर लेकर किसी भी तरह के राजनैतिक और सामाजिक विरोध की हर संभावना को समाप्त किया जा सके l

एकबार राजनैतिक और सामाजिक विरोध और सैन्य प्रतिरोध  की क्षमता समाप्त हो गयी तो असली खेल शुरू होना है जिसे ‘हिन्दू मुक्त भारत’ कहना सर्वथा उपर्युक्त होगा l भारतीय सेना भी इन षड्यंत्रकारियों के आँख में हमेशा खटकती है इसीलिए ये प्रजाति सेना को निशाना बनाने और कमजोर करने का कोई भी अवसर नहीं गवाँती l

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भारत पिछले पैंतीस वर्षों से इस्लामी आतंकवाद से जूझ रहा है, किन्तु, आपने इन धर्मनिरपेक्ष प्रजातियों के मुंह से इस्लाम पर सवाल खड़ा करते नहीं सुना होगा, उल्टा, ये गिरोह हमेशा इस्लाम की रक्षा के लिए तत्पर रहती है बम विस्फोट चाहे जितने भी हो जाएँ, जानें चाहे जितनी भी चली जायें l

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ईसाई मिशनरियां भारत में सन 2014 तक सरकारी संरक्षण में धर्मपरिवर्तन के राष्ट्रद्रोह में बेरोक-टोक व्यस्त थीं l स्थिति ये है की हिन्दू अपने ही देश में आठ राज्यों में अल्पसंख्यक हो गया और किसी ने चिंता व्यक्त नहीं की ? अगर किसी कमजोर से कमजोर जानवर का भी गला दबाओ तो एक बार को वो भी पलट कर पंजा चला देता है किन्तु नपुंसक हिन्दू समाज गला दबने पर आवाज भी नहीं करता, पंजा मारना तो बहुत दूर की बात है l

ऐसा नहीं है की हिन्दू मुक्त भारत का षड़यंत्र मात्र दस – पंद्रह साल से ही चल रहा है, ये षड़यंत्र स्वतंत्रता के समय से ही शुरू हो गया था l इसके दो प्रमुख आयाम हैं – (1) राजनैतिक षड़यंत्र (2) सामाजिक षड़यंत्र l षड़यंत्र के इन दोनों ही आयामों पर हिन्दू मुक्त भारत : राजनैतिक षड़यंत्र और हिन्दू मुक्त भारत : सामाजिक षड़यंत्र के नाम से दो लेख प्रकाशित किये गए हैं जिसे न सिर्फ स्वयं पढ़ें बल्कि अधिक से अधिक साझा भी करें, ऐसी अपेक्षा है l

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बलात्कार : क़ानून व्यवस्था अथवा समाज के अपराधीकरण का विषय ?

17 अक्टूबर 2020 (23:50)

आजकल जो बलात्कार के वास्तविक मामले हैं क्या उन्हें मात्र हवस का नाम देकर अपने दायित्व से मुक्त हुआ जा सकता है ? सवाल है की, जब पांच व्यक्ति एक महिला का आसानी से बलात्कार करके जा सकते हैं तो उसके साथ हैवानियत क्यों करते हैं ? छः माह की दुधमुंही बच्ची किसी की हवस को कैसे शांत कर सकती है ? नहीं, ये मात्र हवस का नहीं, बल्कि, एक बीमार, आपराधिक और कुंठित मानसिकता का मामला है l

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वीर सावरकर : एक अपमानित योद्धा

15 अगस्त 2020 (14:30)

सावरकर ने अपने माफीनामे के प्रयासों पर कहा था कि – “मैं बिना अपनी व्यक्तिगत रिहाई की चाहत के ये कर रहा हूँ l अगर मुझे अंडमान की काल कोठरी में अकेला छोड़ कर सभी राजनैतिक बंदी रिहा कर दिए जाते हैं, तो, मैं उनकी स्वतंत्रता में वैसे ही आनंदित होऊंगा जैसे की ये मुझे मिली हो”l ये था सावरकर का निःस्वार्थ राष्ट्रसेवा का भाव जिसे कृतघ्न राष्ट्र ने हर क्षण अपमानित किया l

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सीएए और एनआरसी का विरोध या भारत और हिन्दू से घृणा

31 जनवरी 2020 ( 23:30 )

2014 से 2019 का कालखंड किसी दुःस्वप्न से कम नहीं था जिसमें मुस्लिम समाज की राजनैतिक प्रासंगिकता ही समाप्त हो गयी और साथ में समाप्त हुआ सेक्युलर नेताओं का वर्चस्व l तभी आया तीन तलाक़ का दंश जिसे लगे अभी हफ्ता भी नहीं हुआ था की धारा 370, श्रीराम मंदिर पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय और सीएए और एनआरसी l एक साथ इतने झटके ‘गजवा के सिपाहियों’ का मानसिक संतुलन बिगाड़ने के लिए पर्याप्त थे l

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हिन्दू मुक्त भारत : सामाजिक षड़यंत्र

26 जनवरी 2020 (00:30)

आज से पंद्रह साल बाद और बीस साल के अन्दर के पांच साल में कभी भी एकबार जोशुआ और गजवा के सिपाही लद्दाख से कन्याकुमारी और सोमनाथ से कामाख्या तक भारत को भयानक रूप से जलाएंगे l वह शुरूआती क्षति करेंगे फिर जवाबी कार्यवाही के बाद अगले 500 साल तक दोनों मोर्चों पर पूरी शांति रहेगी l

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