सीएए और एनआरसी का विरोध या भारत और हिन्दू से घृणा
31 जनवरी 2020 ( 23:30 )
अगर नागरिकता संशोधन क़ानून का उद्देश्य हिन्दुओं को नागरिकता देना होता तो 2014 की समय सीमा नहीं तय की जाती l नागरिकता संशोधन क़ानून का मुख्य उद्देश्य अपने तीन इस्लामी पड़ोसियों को दर्पण दिखाना था जिसमें मुख्यतः पाकिस्तान और बांग्लादेश को ‘चरम अल्पसंख्यक उत्पीड़क’ के रूप में स्थापित करना था l हालाँकि बांग्लादेश के साथ भारत के सम्बन्ध ‘सरकारी स्तर’ पर बहुत अच्छे हैं किन्तु ये सम्बन्ध तभीतक हैं जबतक सुश्री शेख हसीना सत्ता में हैं l संभवतः बढती आयु के कारण सुश्री शेख हसीना का ये अंतिम कार्यकाल हो l जिस दिन सुश्री शेख हसीना सत्ता से बाहर जाएँगी उसके बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश में कोई अंतर नहीं रहेगा l
सरकार के इस एक चाल से भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच के मोबाइल नेटवर्क वाले रिश्ते को एकदम लैंडलाइन टेलीफोन में बदल दिया जिसके सारे तार खुल कर सामने आगये l वही सामाजिक – राजनैतिक गठजोड़ और वही मंशा जिसने 1947 में भारत को तोड़ा था वो भी पूरी तरह नंगी हो गयी l आगे के लेख में हम इस मंशा को ‘गजवा – ए – हिन्द’ और इस गठजोड़ को ‘गजवा के सिपाही’ लिखेंगे l
चलिए मान लिया की सरकार की मंशा सभी मुसलमानों की नागरिकता समाप्त करने की है l तीस करोड़ मुसलमानों को छोड़िये और सिर्फ एक (नाम : आफ़ताब) को उदाहरण के तौर पर लेते हैं l अब बताईये –
सरकार ने एनआरसी के द्वारा आफ़ताब की नागरिकता समाप्त कर दी l आगे ?
डिटेंशन कैंप में डाला जायेगा? चलिए डाल दिया l आगे ?
उसे यातना देकर लिखवाया जायेगा की वो पाकिस्तान या बांग्लादेश से आया है ? चलिए लिखवा लिया l आगे ?
उसे पाकिस्तान या बांग्लादेश भेजा जायेगा ? ? ? चलिए भेज दिया l
अब मेरा प्रश्न . . .
क्या पाकिस्तान या बांग्लादेश आफ़ताब को इस आधार पर स्वीकार कर लेंगे की वो कह रहा है और भारत दबाव डाल रहा है?
क्या आफ़ताब और खासकर भारत को आधिकारिक रूप से आफ़ताब की नागरिकता साबित नहीं करनी होगी ?
नागरिकता साबित न कर सकने की सूरत में पाकिस्तान और बांग्लादेश आफताब को अस्वीकार कर देंगे l अब भारत के पास क्या विकल्प बचेगा ?
अंतर्राष्ट्रीय मंच ? वहां भी नागरिकता साबित करनी होगी l फिर क्या होगा ?
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति इतनी आसान नहीं होती l अपने नागरिक से पल्ला झाड़ना अगर संभव होता तो पाकिस्तान ने अबतक सभी हिन्दू उठा कर भारत में फेंक दिए होते l ये बात हर मुसलमान जानता है l वो अपने अधिकारों को लेकर किसी भी हिन्दू से हज़ार गुना ज्यादा सजग रहता है l उसे कानून और संविधान की किसी भी हिन्दू से ज्यादा अच्छी समझ है l आप ऐसा कोई मुसलमान नहीं पाएंगे जो कागज़ की कमी के कारण किसी भी सरकारी सुविधा अथवा अपनी दावेदारी से वंचित रह जाता हो l अर्थात, उनके पास सभी कागज़ होते हैं क्योंकि उनकी मस्जिदें इन सब कामों में तत्परता दिखाती हैं l इसलिए, मुसलमानों को भ्रमित करने वाली कहानी झूठी है l सवाल उठता है की, अगर ये सत्य है तो सीएए और एनआरसी के विरोध में हिंसक प्रदर्शनों का क्या कारण है? इन पोस्टरों के पीछे क्या सोच है और इसका सीएए तथा एनआरसी से क्या सम्बन्ध ?
वस्तुतः कहानी शुरू होती है धारा 370 और 35A के हटाये जाने से l सत्तर साल के अथक प्रयास से कश्मीर को जिहादी आतंकवाद का अभेद्य गढ़ बनाया गया ताकि इस क्षेत्र से पूरे भारत में जिहादी आतंक फैला कर भारत के लिए इस्लामी क़ानून निर्धारित किये जाएँ l जब इस सामजिक-राजनैतिक गठजोड़ ने देखा की उनके सत्तर साल के परिश्रम को भारत सरकार ने मात्र आधे घंटे में साफ़ कर दिया तो ये एकदम हताश हो गए l जिहादियों को ये समझ नहीं आया की अपने भाई बंधुओं के बीच चाहे कितनी भी डींगे हांक लें किन्तु वो इतने ताकतवर न तो कभी थे और न ही कभी होंगे की किसी देश को झुका सकें l राजनैतिक आकाओं को तो सरकार की शक्ति का भरपूर पता था इसीलिए सत्तर साल से एक समानांतर दुष्प्रचार चल रहा था की 370 को छुआ तो आग लग जाएगी, खून की नदियाँ बह जाएगी, कश्मीर भारत के हाथ से निकल जाएगा इत्यादि l इस दुष्प्रचार का उद्देश्य राष्ट्र और राष्ट्रवादियों का मनोबल तोड़ने के लिए किया गया ताकि ऐसा कोई प्रयास न हो l राजनेता और जिहादी दोनों एक – दूसरे के शौर्य के भरोसे पर थे किन्तु सरकारी चाबुक चलते ही दोनों अपनी – अपनी जान बचाने में लग गए l
इस राजनैतिक – सामाजिक गठजोड़ की कार्यशैली को समझना आवश्यक है l स्वतंत्रता के बाद से ही हर सेक्युलर नेता और दल इस्लामी समाज को हिन्दू समाज के कनपटी पर एक बन्दूक की तरह रख कर बहुसंख्यक समाज का भयादोहन (ब्लैकमेल) करता रहा है l दूसरे शब्दों में कहें तो मुसलमानों को हर मामले में ‘वीटो’ करने का अधिकार दिया गया और हिन्दुओं को बताया गया की अगर मुसलमान नाराज़ हो गए तो देश में अशांति छा जाएगी, देश टूट जायेगा इसलिए चुप रहें और हर अपमान स्वीकार करें l समाज ने भी घोर नंगई के द्वारा सेक्युलर नेताओं को जमकर बल प्रदान किया l
2014 से 2019 का कालखंड किसी दुःस्वप्न से कम नहीं था जिसमें मुस्लिम समाज की राजनैतिक प्रासंगिकता ही समाप्त हो गयी और साथ में समाप्त हुआ सेक्युलर नेताओं का वर्चस्व l तभी आया तीन तलाक़ का दंश जिसे लगे अभी हफ्ता भी नहीं हुआ था की धारा 370 का हथौड़ा सिर पर गिरा, उसके बाद श्रीराम मंदिर पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय और रही सही कसर सीएए और एनआरसी ने पूरा कर दिया l एक साथ इतने झटके ‘गजवा के सिपाहियों’ का मानसिक संतुलन बिगाड़ने के लिए पर्याप्त थे l अपने ‘गजवा – ए – हिन्द’ के अस्तित्व को बचाने के लिए सारे सिपाही सड़कों पर बिलबिला कर निकल पड़े l ख़ास सीएए और एनआरसी से एक समस्या है की घुसपैठियों द्वारा इनके जनसँख्या जिहाद की तेज गति पर विराम लग गया है l यही है आज के धरना प्रदर्शों की कुल सत्यता l
सीएए और एनआरसी के विरोध प्रदर्शनों में महिलाओं के बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लेने से भारत का एक और भ्रम टूट गया की ये ‘बेचारी महिलाएं’ अनेकों कुप्रथाओं के द्वारा सताई जाती है, अतः, महिला और पुरुष को अलग - अलग करके देखना भारी भूल होगी l जिस तरह के नारे लगाये जा रहे है, पोस्टर लगाये जा रहे हैं उससे इन लोगों की भारत और हिन्दू विरोधी मंशा और चरित्र पूरी तरह से उजागर हो गया है l
सवाल है की एक राष्ट्र के रूप में भारत और एक समाज के रूप में हिन्दुओं की क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए ?
अल्पसंख्यक संयुक्त राष्ट्र संघ की परिभाषा है हमारे संविधान की नहीं l संयुक्त राष्ट्र संघ की परिभाषा के अनुसार 5% से अधिक की जनसँख्या अल्पसंख्यक नहीं हो सकती l भारत सरकार तत्काल संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार भारत में अल्पसंख्यकों को पुनः परिभाषित करे l
राष्ट्र विभाजन की भाषा बोलने और आतंकवादी षड़यंत्र के अपराध में शामिल सभी समाज अथवा गिरोह के ‘नागरिक अधिकार’ अत्यंत सीमित कर दिए जाएँ अगर समाप्त करना संभव न हो l
राष्ट्र विभाजन की भाषा बोलने और आतंकवादी षड़यंत्र के अपराध में शामिल सभी समाज अथवा गिरोह का सम्पूर्ण आर्थिक बहिष्कार करे l एक छोटे से मिस्त्री स्तर के कार्य से लेकर बड़े कॉर्पोरेट अनुबंध अथवा नौकरी तक हर स्तर पर बहिष्कार होना चाहिए l
सम्पूर्ण असहयोग ! ! !
कृतघ्न चरित्र, प्रेम और सौहार्द की भाषा नहीं समझता l ये वही चरित्र है जिसने यूरोप में शरण लेने के लिए एक बच्चे को मारकर समुद्र के किनारे लिटा दिया था और बाद में अपने शरणदाता यूरोप को जला दिया l
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