Hindu_Mukt_Bharat

हिन्दू मुक्त भारत : राजनैतिक षड़यंत्र
07 मार्च 2019 (22:30)

“ मैं शिक्षा से अंग्रेज, संस्कृति से मुसलमान और दुर्घटनावश जन्म से हिन्दू हूँ ” - जवाहरलाल नेहरु

“ राष्ट्र के संसाधनों पर पहला आधिकार मुसलमानों का है ” - पूर्वप्रधानमंत्री मनमोहन सिंह

“ भारत को हिन्दू आतंकवाद से सबसे ज्यादा खतरा है ” - राहुल गाँधी

उपरोक्त मात्र वक्तव्य नहीं बल्कि एक सोच है जो पिछले सत्तर साल से भारतवर्ष और सनातन समाज की घेराबंदी कर रही है l आईये एक दृष्टि डालते हैं इस हिन्दू मुक्त भारत के राजनैतिक षड़यंत्र पर –

धर्म के नाम पर राष्ट्र के विभाजन का निर्णय लिया गया l निर्णय का आधार राष्ट्रव्यापी मतदान था जिसमें आश्चर्यजनक रूप से केवल मुसलमानों को ही मत देने का अधिकार था l निर्णय अपेक्षा के अनुसार आया – 95% मतदाताओं ने पाकिस्तान बनाने का समर्थन किया और कहा की वो हिन्दुओं के साथ नहीं रह सकते l बहुसंख्यक समाज को राष्ट्र पर इतने महत्वपूर्ण निर्णय से अलग रखने के पीछे सिर्फ एक ही कारण था की उस समय के राजनीतिक आकाओं को एक ख़ास तरह का ही निर्णय चाहिए था l राष्ट्र का विभाजन चाहिए था l भारत के दोनों तरफ इस्लामी ताकतों को मजबूत करना था इसलिए बेहद हास्यास्पद विभाजन सबने स्वीकारा l

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अप्रसन्न होते हुए भी डॉ आंबेडकर ने विभाजन का समर्थन सिर्फ इसलिए किया क्योंकि उनका मत था की हिन्दुओं की प्रकृति ऐसी नहीं है की वो इस्लामी चरमपंथ को झेल सकें इसलिए इनसे हमेशा के लिए जान छूट जाये तो अच्छा l यही कारण था की डॉ आंबेडकर चाहते थे की विभाजन हो तो सम्पूर्ण हो, अर्थात्, सारे मुसलमान पाकिस्तान जायें और सारे हिन्दू भारत आयें l लेकिन, गाँधी और खासकर नेहरु ने डॉ आंबेडकर को न सिर्फ अस्वीकार कर दिया बल्कि सर्वदा के लिए हाशिये पर डाल दिया l डॉ आंबेडकर को भी अपने चरम – राष्ट्रवादी विचारधारा के कारण कांग्रेस में बार – बार अपमानित होना पड़ा था l इसका सिर्फ एक कारण था की इस्लामी ताकतों को भारत के भीतर भी मजबूत करना था और इसी कारण धर्म आधारित विभाजन के बावजूद भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित नहीं किया गया l देश को तोड़ने का अपराध तय करने और सारे नागरिक अधिकार समाप्त करने के बजाये मुसलमानों को राजनैतिक संरक्षण में फिर से फैलने और इक्कठा होने का अवसर प्रदान किया गया तथा साथ ही साथ हर मामले में वीटो करने का अघोषित अधिकार भी दिया गया l नतीजा हुआ की कश्मीर से एक बार फिर विभाजन के स्वर गूंजे और इस्लामी आतंकवाद ने पूरे राष्ट्र को ग्रस लिया और धर्मनिरपेक्ष नस्लों की सरकारें संरक्षक की भूमिका में मौन रहीं l इस मूक समर्थन का नतीजा हुआ की कश्मीर की आग बंगाल से होते हुए केरल पहुँच गयी l असम की किस्मत अच्छी थी की सही समय पर एक राष्ट्रवादी सरकार आगई l

स्वतंत्रता मिलने के बाद पहला काम नेहरु और कांग्रेस ने किया की सभी राजे, रजवाड़ों और जमींदारों की संपत्ति का सरकारी अधिग्रहण कर लिया l सभी बड़े, प्रतिष्ठित और धन संपन्न मंदिरों और मठों को सरकार के नियंत्रण में ले लिया l सामान्य नागरिकों की अचल संपत्ति पर सीलिंग लगा दी l लेकिन, चर्चों और मस्जिदों को पूर्ण स्वतंत्रता दी l सरकार का कोई दखल नहीं l यह जानते हुए भी की भारत में सबसे ज्यादा अचल संपत्ति चर्चों के पास है l स्वतंत्रता के बाद से लेकर मई 2014 के पहले तक मदरसों, मस्जिदों, ईसाई मिशनरियों, चर्चों और इन्ही के समर्थित एनजीओ को अथाह विदेशी पैसा आता रहा है जिसपर सभी सरकारों ने आँख मूंदे रखा l किसी ने कभी भी नहीं पूछा की आखिर ये पैसा कौन भेजता है ? क्यों भेजता है ? और ये पैसा कहाँ पर खर्च होता है ?

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RPT:New Delhi: Congress Party Vice president Rahul Gandhi adjusts his cap during an Iftar party hosted by party president Sonia Gandhi in New Delhi on Sunday.   PTI Photo by Vijay Verma (PTI7_27_2014_000169B)

जब ये सवाल मोदी सरकार ने पूछे तो बीस हज़ार एनजीओ अपना सामान समेट कर रातोरात गायब हो गए l सनातन संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण और चर्चों तथा मस्जिदों को अराजकता की खुली छूट ये सुनिश्चित करने के लिए थी की धर्मांतरण एक ख़ास दिशा में पूरे वेग से हो l मदर टेरेसा जैसी विश्व कुख्यात धर्मांतरण की फैक्ट्री को न सिर्फ पैर पसारने देना बल्कि भारत रत्न जैसे प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित करना इसी कड़ी का हिस्सा था l

हिन्दू मुक्त भारत के षड्यंत्र की अगली कड़ी में एक महत्वपूर्ण संविधान संशोधन किया गया l इंदिरा गाँधी ने 1976 में आपातकाल लगा, सारे विपक्षी नेताओं को जेल में डाल कर संविधान की मूल प्रस्तावना को ही बदल कर ‘समाजवादी’ और ‘पंथ-निरपेक्ष’ शब्द डाल कर ये सुनिश्चित करने का प्रयास किया की आधिकारिक रूप से हिन्दू कभी भी भारत पर अपनी स्वाभाविक जन्मभूमि होने का  दावा न कर सकें l अर्थात्, भारत की सांस्कृतिक हैसियत किसी धर्मशाले से अधिक न हो l

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हिन्दू मुक्त भारत के अभियान की राह का सबसे बड़ा रोड़ा भारत की सेना है जो गैरराजनैतिक और चरम राष्ट्रवादी है l ये इतनी विशाल, अनुशासित और शक्तिशाली मां भारती के सपूतों की संस्था है जिसे राजनेता अपने स्वार्थ में नियंत्रित नहीं कर सकते, इसलिए, सदैव ही सेना को हर संभव कमजोर करने और रखने का प्रयास करते हैं l 

चाहे साजो सामान और हथियारों के द्वारा अत्याधुनिक और शक्तिशाली बनाने का सवाल हो या नैतिक समर्थन के द्वारा मनोबल को उच्चतम रखने का सवाल हो, सेक्युलर गिरोह ने कोई भी कसर नहीं छोड़ी सेना के खिलाफ l आधुनिक हथियारों और साजो – सामान की हालत ये है की पिछले तीस सालों से सेना रोती रह गयी जबतक की मोदी सरकार नहीं आगई l जहांतक मनोबल बढाने का सवाल है तो सेनाध्यक्ष को सड़क का गुंडा कहा गया, सेना पर बलात्कार के आरोप लगाये गए l पूर्वोत्तर के राज्यों में कई विदेशी एनजीओ काफी समय से कार्यरत हैं जिनके पैसों पर पलने वाली एजेंटों ने ही सेना के खिलाफ नग्न प्रदर्शन भी किये और बलात्कार के आरोप भी लगाये और सरकारें आँख मूँद कर बैठी रहीं l हाल के दिनों में सैनिक कार्यवाही का सुबूत मांगने का एक नया प्रचलन आरम्भ हो गया है जो घृणित भी है और निंदनीय भी l

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पिछले तीन दशक की हिन्दू मुक्त भारत की राजनीति ने तो सारे रिकॉर्ड ही तोड़ डाले l सोनिया गाँधी के नेतृत्व में हर सेक्युलर दल के मुखिया ने इसमें भरपूर योगदान दिया l हिन्दुओं को जातियों में तोड़ो, जातिय वैमनस्य बढ़ाओ और मुसलमानों और इसाईयों को एक करो, के षड्यंत्र की अति तो तब हो गयी, जब एक तरफ जाति के बहाने अपने ही हिन्दुओं को गालियाँ देते, भेदभाव करते और दूसरी तरफ बंगलादेशी और म्यन्मार के मुसलमान घुसपैठियों को भारत में बसाने के तरीके खोजते l पिछले तीन दशक के कालखंड में पांच करोड़ से भी ज्यादा घुसपैठियों को भारत में बसाया गया l घुसपैठियों को बसाने के पीछे उद्देश्य भारत के जनसँख्या अनुपात को बदलना था जिससे धीरे धीरे हिन्दू अल्पसंख्यक हो जायें l परिणाम ये है की आज भारत के आठ राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गया है और इस राष्ट्रद्रोह का जिम्मेदार हर टोपीधारी नेता है l घुसपैठियों को निकालने के मामले में सारे टोपीधारी नेता कितना हंगामा खड़ा करते हैं ये सारा देश देख रहा है l

देश देख तो रहा है लेकिन कितना समझ रहा है, ये कहना मुश्किल है l सबसे मुश्किल ये समझ पाना है की जनता समझदार नहीं है या उसकी समझ पर जातिवाद, क्षेत्रवाद अथवा तुच्छ लालच की पट्टी बंधी पड़ी है जिसके कारण उसे अपने आनेवाली पीढ़ी का भविष्य दिखाई नहीं दे रहा है ?

राष्ट्र की अखंडता के राह में अगर किसी भी तरह की राजनैतिक, जातिय, क्षेत्रीय, धार्मिक अथवा व्यक्तिगत लालसा बाधा बन रही हो तो उसे पूरी शक्ति से कुचल दिया जाना चाहिए l

 - आचार्य चाणक्य  

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