Kaal_Chakra

श्रीमद्भगवद्गीता में एक श्लोक है -

सहस्त्रयुगपर्यंतमहर्यद्ब्रह्मणों विदुः l

रात्रिं युगसहस्त्रान्तां तॆऽहॊराञविदॊ जनाः l l

अर्थात्, ब्रह्मा का जो एक दिन है, उसको एक हज़ार चतुर्युगीतक की अवधि वाला और रात्रि को भी एक हज़ार चतुर्युगीतक की अवधिवाली जो पुरुष तत्व से जानते हैं, वे योगीजन काल के तत्व को जानने वाले हैं l

इस श्लोक में युग का अर्थ ‘दिव्ययुग’ है l

एक दिव्ययुग अथवा महायुग, चारों युगों – सत, त्रेता, द्वापर और कलियुग – के कुल समय को मिलाने पर बनता है l

यह देवताओं का एक युग है, इसलिए, इसे दिव्ययुग अथवा महायुग कहते हैं l

71 महायुग का एक मन्वन्तर होता है l वर्तमान में 7 वां मन्वन्तर चल रहा है l

मनुष्य का एक वर्ष, देवताओं के चौबीस घंटे के एक दिन रात के बराबर होता है l

मनुष्य के तीस वर्ष, देवताओं के एक महीने के बराबर होता है l

मनुष्य के तीन सौ साठ वर्ष, देवताओं के एक दिव्यवर्ष के बराबर होता है l

ऐसे बारह हज़ार दिव्यवर्षों का एक दिव्ययुग होता है l इसे महायुग अथवा चतुर्युगी भी कहते हैं l

इस संख्या को जोड़ने पर 43,20,000 मनुष्य के वर्ष होते हैं l

दिव्यवर्षों के हिसाब से –

बारह सौ दिव्यवर्षों का हमारा कलियुग,

अर्थात, कलियुग = 1200 x 360 = 4,32,000 मनुष्य वर्ष l

चौबीस सौ दिव्यवर्षों का द्वापर,

अर्थात, द्वापर = 2400 x 360 = 8,64,000 मनुष्य वर्ष ( कलियुग से दोगुना )

छत्तीस सौ दिव्यवर्षों का त्रेता, और,

अर्थात, त्रेता = 3600 x 360 = 12,96,000 मनुष्य वर्ष ( कलियुग से तिगुना )

अड़तालीस सौ दिव्यवर्षों का सतयुग बनता है l

अर्थात, सतयुग = 4800 x 360 = 17,28,000 मनुष्य वर्ष ( कलियुग से चौगुना )

कुल मिलकर बारह हज़ार दिव्यवर्ष बनते हैं l इसप्रकार, बारह हज़ार दिव्यवर्षों का एक दिव्ययुग बनता है l

अर्थात, बारह हज़ार दिव्यवर्ष अथवा एक दिव्ययुग में मनुष्य के तैंतालीस लाख, बीस हज़ार (43,20,000 ) वर्ष बनते हैं l

ऐसे हज़ार दिव्ययुगों अथवा मनुष्य के चार अरब बत्तीस करोड़ (4,32,00,00,000) साल का ब्रह्मा जी का एक दिन और इतने ही समय की एक रात होती है l

ब्रह्मा जी के दिन को ‘कल्प’ अथवा ‘सर्ग’ और रात्रि को ‘प्रलय’ कहते हैं l

ऐसे तीस दिन – रात का ब्रह्मा जी का एक महीना, ऐसे बारह महीनों का एक वर्ष और ऐसे सौ वर्षों की ब्रह्मा जी की पूर्णायु होती है l

अर्थात्, इतनी बड़ी आकाशगंगा और उसकी इतनी लम्बी आयु के सामने हमारी आयु नगण्य है, अतः, संचय और प्रतिस्पर्धा की प्रवृत्ति से बचने का प्रयास करें l

घूमते हुए काल-चक्र के सामने मनुष्य के पास मात्र दो विकल्प होते हैं l पहला, चक्र को पकड़ कर लटक जाये अर्थात् उसके साथ हो ले और दूसरा, उसके सामने खड़े होकर उसे पकड़ ले अर्थात् उसे रोकने का प्रयास करे l अगर आपने पहला विकल्प चुना तो आप जीवन में आगे बढ़ेंगे और दीर्घायु होंगे और अगर आपने दूसर विकल्प चुना तो काल-चक्र आपको कुचलते हुए आपके ऊपर से निकल जायेगा l

अतः अपने विकल्पों का चुनाव अत्यधिक सावधानी से करें क्योंकि, आप जो विकल्प चुनते हैं वही आपका भविष्य होता है l