![Swasth_Bhaarat Swasth_Bhaarat](https://pmpatrika.com/wp-content/uploads/2021/01/Swasth_Bhaarat.jpg)
ब्रह्म मुहूर्त में प्रातः चार बजे उठने की आदत डालिये I इस एक प्रयास मात्र से आपकी आधी से अधिक मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं समाप्त हो जायेगी I ब्रह्म मुहूर्त में सोना, अनगिनत रोगों को दावत देने जैसा है I
मुंह धोकर दो फली लहसुन की गर्म पानी (एक से दो गिलास) से लें, फिर, शौच इत्यादि के लिए जायें l लहसुन को चबा कर सीधा निगलने के बजाये दो फली लहसुन की मुंह में रखें फिर गर्म पानी मुंह में भर कर लहसुन को चबाकर लहसुन को पानी के साथ घुला लें फिर निगलें ताकि गले में जलन ना हो l लहसुन वह ईश्वरीय वरदान है जिसके सेवन से हम अनेकों बीमारियों से बचे रहते हैं l ध्यान रहे ! अगर आप खून पतला करने की कोई भी दवा लेते हैं तो लहसुन का सेवन करने से पहले अपने चिकित्सक की सलाह अवश्य लें क्योंकि लहसुन में भी खून पतला करने के गुण होते है l
![home-remedies-for-ear-infections लहसुन](https://pmpatrika.com/wp-content/uploads/2019/02/home-remedies-for-ear-infections-150x150.jpg)
![II ध्यान और आध्यात्म का संगम - योग II](http://darpann.com/wp-content/uploads/2017/12/P_7-1024x791.jpg)
शौच आदि से निवृत्त होकर नित्य सूर्यनमस्कार, आसन और प्राणायाम के लिए 90 से 120 मिनट का समय अवश्य दें l अपने नौकरी की छद्दम व्यस्तता पर गौरवान्वित होकर मुस्कुराईये मत . . . क्योंकि आपके पास इसके सिवा और कोई रास्ता भी नहीं है l किसी बीमारी ने घेरा तो नौकरी भी नहीं रहेगी और परिवार की जो दुर्दशा होगी सो अलग l
स्मरण रहे ! ! ! योग, आसन, प्राणायाम कोई व्यायाम की क्रिया नहीं है बल्कि विशुद्ध सनातन आध्यात्मिक क्रिया है, जिसमें हम प्राणों का आयाम करते हुए आत्मा को परमात्मा से जोड़ कर ईश्वर की उर्जा को अपने शरीर में ग्रहण करने का प्रयास करते हैं, इसीलिए इसे योग कहते हैं अर्थात जोड़ना l आसन और प्राणायाम करते समय ध्यान ईश्वर में केन्द्रित करके उर्जा ग्रहण करने का भाव होना आवश्यक है, अन्यथा, सारा जीवन सांस खींचते – छोड़ते रहिये, हाथ पैर इधर – उधर करते रहिये . . . कोई लाभ नहीं मिलेगा l
![Shivling-no-watermark Shivling-no-watermark](http://darpann.com/wp-content/uploads/2017/12/Shivling-no-watermark.jpg)
आसन और प्राणायाम से निवृत्त होने के 20 मिनट के पश्चात एक गिलास गर्म पानी में एक चम्मच जौ का ज्वारा मिला कर सेवन करें, फिर, स्नान और पूजा इत्यादि को जायें l जौ के ज्वारे के सेवन के बाद 30 मिनट तक कुछ नहीं खाना चाहिए l दस मिनट ही सही लेकिन अपने घर में एक छोटा सा पूजाघर बना कर उसमें अवश्य बैठें l कोई मन्त्र नहीं पढना चाहते या पाठ नहीं करना चाहते तो एक अधिकतम तीन इंच के शिवलिंग (स्वयम्भू जैसे पारद, नर्मदेश्वर, स्फटिक ) को लाकर उनपर थोड़ा सा जल नित्य चढ़ाएं l देवाधिदेव महादेव तो एक लोटा जल में ही त्रिलोक दे देते हैं l
![barley_grass जौ का ज्वारा](http://darpann.com/wp-content/uploads/2019/02/barley_grass.jpg)
स्नान के लिए कृपया सूती तौलिये का ही प्रयोग करें जो आपको खादी आश्रम से मिल जाएगी l स्नान के बाद कम से कम दस मिनट पूरे शरीर (मुंह को भी) को सूती तौलिये से रगड़ कर पोंछे, इससे आपकी त्वचा में नयी उर्जा और चमक आएगी और आपका पाचन तंत्र तथा यकृत (लिवर) को नयी शक्ति मिलेगी l
अगर आपको सुबह चाय पीने की आदत है तो दो चम्मच चने का सत्तू गर्म पानी से पीने के पश्चात ही चाय का सेवन करें जिससे वात और पित्त की समस्या नहीं रहेगी l
दिभर कार्यालय में जम कर काम कीजिये, किन्तु रात्रि में ये सुनिश्चित करें की खाना रात्रि नौ बजे से पहले समाप्त हो ही जाये l हालांकि, नियमतः रात्रि आठ बजे से पहले रात्रि का भोजन समाप्त हो जाना चाहिए l
कभी भी, खाना खाने के एक घंटा पहले से लेकर एक घंटा बाद तक पानी का सेवन ना करें l खाना खाने के एक घंटे के बाद अपनी पूरी छमता के अनुसार धीरे धीरे करके पानी पीयें l पानी सदैव बैठ कर ही पीना चाहिए l खाना खाने के तुरंत बाद बिस्तर पर नहीं जाना चाहिए l
एक नियम बना लें की रात्रि में खाना खाने के बाद, लैपटॉप, कंप्यूटर, मोबाइल या कोई भी अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान को हाथ नहीं लगायेंगे l बल्कि, कम से कम एक घंटा कोई भी रुचिकर पुस्तक पढ़कर सोने की आदत बनाएं l पुस्तक में भगवद्गीता, योग अथवा प्राकृतिक चिकित्सा जैसी पुस्तकों को प्राथमिकता दें l
किसी भी रोग को पनपने के लिए शरीर का अम्लीय (एसिडिक) होना आवश्यक है जबकि क्षारीय शरीर में कोई भी रोगाणु देर तक जीवित नहीं रह सकता l इसलिए हमें हमेशा क्षारीय भोजन को ग्रहण करने की कोशिश करनी चाहिए l
किसी जानकार वैद्य (नाड़ी विशेषज्ञ) से मिलकर अपनी प्रकृति (वात, पित्त, कफ) को जानें और उसी के अनुसार अपने भोजन का चयन करें l
सफ़ेद चीनी और आयोडीन वाले नमक का सेवन तत्काल बंद कर दें l ये दोनों पदार्थ, पेट में जाकर प्रचुर मात्रा में अम्ल (एसिड) बनाते हैं l इनके स्थान पर गुड़ और समुद्री या सेंधा नमक का प्रयोग करें l समुद्री और सेंधा नमक पेट में जाकर क्षार बनाते है l इसी प्रकार गुड़ पेट में जाकर क्षार और फोस्फोरस बनाता है जो कैल्शियम के साथ मिलकर हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है l
जब आप सफ़ेद चीनी छोड़ने का निश्चय करें तो इस बात का ध्यान रखें की शरीर को प्राकृतिक शुगर अवश्य मिले जिससे आपके शरीर का ‘शुगर लेवल’ बरकरार रहे l इसके लिए आप नित्य कोई एक फल का सेवन अवश्य करें, जब फल उपलब्ध ना हो तो कम से कम चार दाना किशमिश ही खा लें l
संभव हो तो चाय का सेवन बंद कर दें, नहीं तो, कम से कम दूध और चीनी वाली चाय के स्थान पर गुड़ और नीम्बू वाली चाय का सेवन करें l
अगर सम्मान से जीना चाहते हैं तो नशा, मांसाहार और जंक फ़ूड तत्काल प्रभाव से बंद कर दें l
हमेशा जितनी भूख हो उससे दो रोटी कम खाएं l बहुत से लोग होंगे जिनकी कुल भूख ही दो रोटी की होती है ऐसे लोगों को आयुर्वेदिक चिकित्सा द्वारा अपनी भूख को बढ़ाना चाहिए l दो रोटी कम खाने का नियम सामान्य व्यक्तियों के लिए है l
बिना मौसम के फल और सब्जी का सेवन कभी न करें, ये स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है l
नाश्ते और दोनों समय खाने के बाद देशी गुड़ का सेवन अवश्य करें l देशी गुड़ अर्थात, लाल, भूरा या कत्थई दिखने वाला, न की सफ़ेद l
सरसों के तेल और गाय के घी के अलावा कोई अन्य तेल या घी का सेवन ना करें l गाय का घी अमृत है इसका सेवन नित्य ही करना चाहिए l
ठन्डे पानी या अन्य ठन्डे पेय पदार्थ का सेवन तत्काल बंद कर दें l पानी हमेशा सामान्य तापमान का ही ग्रहण करें l
आंवला और गिलोय का नित्य दो समय सेवन अवश्य करें l
कहते हैं कि, जो आंवले का सेवन करता है वो बूढ़ा नहीं होता और जो 'जौ के ज्वारे' का नित्य सेवन करता है उसे मृत्यु नहीं आती l प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा स्वस्थ रहने के उपायों पर श्री नागेन्द्र कुमार नीरज की अनेकों पुस्तकें हैं जिनके अध्ययन से लाभान्वित हुआ जा सकता है l
आंवले का सेवन आप नित्य नियम से सालों साल कर सकते हैं l किन्तु इसके आलावा, लगभग सभी अन्य औषधीय गुणों वाली प्राकृतिक वनस्पतियों के सेवन में एक अंतराल रखना चाहिए ताकि उसका असर बना रहे और शरीर उसका अभ्यस्त ना हो जाये l जैसे हर तीन महीने पर एक महीने का अंतराल l
विशुद्ध आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन बिना वैद्य के परामर्श के ना करें l अपने वैद्य स्वयं न बनें l उपरोक्त दी हुई वस्तुएं औषधीय गुणों वाली प्राकृतिक रूप से उपलब्ध नित्य जीवन में प्रयोग आने वाली वनस्पतियाँ ही हैं l
अगर आपको लगता है की चूंकि आप एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी के वरिष्ठ अधिकारी है इसलिए 12 – 14 घंटे तो काम करना बनता ही है, तो एक बार अपने कंपनी के गृह राष्ट्र में अपने ही स्तर के अधिकारी की दिनचर्या का भी तुलनात्मक अध्ययन कर लीजिये l आपको समझ आ जायेगा समस्या नौकरी में नहीं बल्कि हम भारतीयों की गुलाम मानसिकता में है जो काम से ज्यादा वरिष्ठ अधिकारियों की खुशामद में समय गंवाती है l