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भारत में लोकतंत्र या भीड़तन्त्र
15 जुलाई 2018 ( 01:15 )

लोकतंत्र . . . . एक ऐसा शब्द जिसके उद्बोधन मात्र से हर भारतीय का सीना चौड़ा हो जाता है, लेकिन क्या हम वास्तविक लोकतंत्र में रहते हैं या ये एक भीड़तन्त्र अथवा फर्जी लोकतंत्र है ?

लोकतंत्र का अर्थ होता है, एक ऐसा तंत्र जो जनता के प्रति जवाबदेह हो तथा जनता इतनी शिक्षित, ईमानदार तथा अपने अधिकारों और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति बेहद सजग और समर्पित हो ताकि लोकतंत्र के चारो स्तंभों की जवाबदेही तय कर सके I हमारे लोकतंत्र के चारो स्तम्भ अराजकता के शिकार हैं जो जवाबदेही नहीं चाहते और जनता भी इनकी जवाबदेही नहीं चाहती, क्योंकि, वो स्वयं भी अपने कर्तव्यों की जवाबदेही नहीं चाहती और ना ही ये समझना चाहती है की लोभ और अधिकार में बहुत अंतर होता है I

भारत कैसा लोकतंत्र है जहां पर वोट-बैंक हुआ करते हैं ? जहां पर वोट-बैंक होते हैं वहां पर भीड़तन्त्र होता है लोकतंत्र नहीं I वोट-बैंक शब्द लोकतंत्र के मुंह पर किसी कालिख की तरह है जिसका प्रयोग हर नेता बड़े गर्व से करता है I इस भीड़तन्त्र की सबसे ज्यादा मार भारत के संविधान ने खायी जिसको मात्र सत्तर साल में सौ से भी ज्यादा बार राजनैतिक लाभ के लिए संशोधित कर दिया गया और हद तो तब हो गई जब आपातकाल लगा कर, सभी विपक्षी नेताओं को जेल में डाल कर संविधान की मूल प्रस्तावना को ही बदल दिया गया, और जनता परिवार की सेवा में व्यस्त और मस्त रही I

भारत का लोकतंत्र सोता रहा जब धर्म के नाम पर राष्ट्र के टुकड़े किये गए, फिर, लोकतंत्र और मानवता की आड़ में उन्ही धर्मान्धो को हर मामले में संवैधानिक रूप से वरीयता दी गयी I आज यही जमात लोकतंत्र समेत पूरे राष्ट्र को निगलने की तैयारी में है और पूरा लोकतंत्र मौन है क्योंकि इसके पीछे एक भीड़ है जो वोट बैंक है I

स्वतंत्रता के समय भारत की जनसँख्या तीस करोड़ (हिन्दू : 95% ; मुस्लिम : 3%) थी जो सत्तर साल में बढ़ कर एक सौ तीस करोड़ (हिन्दू : 65% ; मुस्लिम : 30%) हो गयी और भारत का लोकतंत्र तेजी बढती हुई जनसँख्या और बदलते हुए जनसँख्या अनुपात पर राष्ट्रद्रोह की हद तक मौन है I सरकार किसी की भी हो लेकिन बढती जनसँख्या और बदलते जनसँख्या अनुपात पर बोलने के नाम पर ही इनके मुंह को लकवा मार जाता है क्योंकि इसके पीछे एक भीड़ है जो वोट बैंक है I 

कैसी विडम्बंना है की एक तरफ भारत को पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिया गया दूसरी तरफ पंथ आधारित क़ानून बना दिये गए I यहाँ तक की सर्वोच्च न्यायलय ने भी समान नागरिक संहिता को लागू करने का आदेश कई दशक पहले दे दिया था और अभी कुछ समय पहले फिर अपने फैसले को दोहराया है लेकिन भारत का लोकतंत्र मौन है, क्योंकि, इसके पीछे एक भीड़ है जो वोट बैंक है I 

भारत का लोकतंत्र तब भी सोता रहा जब तिलक, तराजू और तलवार . . . तथा भूरा बाल साफ़ करो . . . के नारे दिये गए, सामाजिक न्याय के नाम पर विभिन्न प्रकार के आरक्षण की राजनीति खेली जाने लगी I हालात ये हैं की संविधान के तो सौ संशोधन संभव हैं लेकिन उसी संविधान की एक व्यवस्था के पुनरावलोकन की बात कहना भी संभव नहीं है, अर्थात, संविधान की एक व्यवस्था संविधान से भी ऊपर हो गयी है क्योंकि इसके पीछे एक भीड़ है जो वोट बैंक है I 

भारत की राजधानी के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान से भारत तेरे टुकड़े होंगे . . . इंशा-अल्लाह इंशा-अल्लाह के नारे लगते हैं और लोकतंत्र असहाय खड़ा देखता रहता है, पिछले बीस साल में चतुर्दिक भ्रष्टाचार हुआ लेकिन लोकतंत्र असहाय रहा, क्योंकि, कहीं हमारी नपुंसकता तो कहीं लोभ हमारे निर्णयों के रास्ते में आ गया I 

इन सब में सबसे दयनीय स्थिति में वो 4% आयकरदाता हैं जो 16 घंटे प्रतिदिन मेहनत भी करते हैं और अपनी आय में से कर भी चुकाते हैं और बदले में भविष्य अंधकारमय I सरकारें भी रॉबिनहुड बनने का शौक छोड़ नहीं पातीं, इसलिए, पार्टी कोई भी हो, सभी सरकारें धन लुटाने में आगे हैं, क्योंकि, इसके पीछे एक भीड़ है जो वोट बैंक है I   

ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जो भारत के लोकतंत्र को मात्र भीड़तन्त्र के रूप में बारम्बार स्थापित करते हैं, लेकिन सवाल ये है की क्या होना चाहिए ?

सबसे पहले तो विजयी भीड़ को समझना होगा की आज आप विजयी भीड़ का हिस्सा हैं तो कल कोई आप से बड़ी भीड़ आपकी गर्दन पकड़ लेगी I सिर्फ लोकतंत्र ही स्थायी है और स्थायी ही रहनी चाहिए, भीड़ ना तो कभी स्थायी थी और ना ही कभी स्थायी रह पायेगी I इसलिए, अपने कर्तव्यों को समझें, अपने अधिकारों को जाने, अपने नेताओं ( जिसे वोट दिया है ) की जवाबदेही तय करें, अपने तात्कालिक लाभ और लोभ को छोड़ कर दूरगामी परिणामों और पीढ़ियों के उज्जवल भविष्य की सोचें I नहीं तो, नेताओं के विदेशी बैंकों में अरबों रुपये हैं, वो निकल लेंगे, लेकिन, अगर भारत दुनिया का सबसे बड़ा स्लम बन गया तो आप और आपकी पीढ़ियों के लिए किसी नरक से कम नहीं होगा I

जैसे लोगों को आप वोट देते हैं, वैसा ही राष्ट्र और समाज आप अपने लिए बनाते हैं I   

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