Rafale

राफेल पर राहुल गाँधी का झूठ
02 अप्रैल 2019 (15:10)

बिना किसी प्रस्तावना के सीधे मुख्य विषय पर आते हैं की राफेल की खरीद पर राहुल गाँधी के क्या आरोप हैं, क्या सच्चाई है और क्या साजिश हो रही है ? यहाँ हम कोई भी आंकड़े अपनी तरफ से नहीं रख रहे हैं बल्कि राहुल गाँधी के बताये आंकड़ों पर ही अपना आकलन दे रहे हैं l राहुल गाँधी के मुख्य आरोप और सत्यता निम्नलिखित हैं –

1 – एचएएल को हटा कर अम्बानी को अनुबंध देने में नरेन्द्र मोदी ने सहायता की l

राफेल को लेकर एचएएल की कहानी 2012 में उस समय ही समाप्त हो गयी थी जब एचएएल और दसौल्ट कंपनी दोनों ने ही उस समय की राहुल गाँधी सरकार की शर्तों को मानने से इनकार कर दिया था l जबकि अनिल अम्बानी के साथ अनुबंध इसके पांच साल बाद हुआ l विस्तृत जानकारी बिंदु संख्या 4 में देखें l

सबसे पहली बात, अनिल अम्बानी को दसौल्ट कंपनी या उस समय की फ्रांस सरकार से कोई अनुबंध लेने के लिए किसी नरेन्द्र मोदी, किसी भारतीय प्रधानमन्त्री या किसी भारत के सहायता की कोई आवश्यकता नहीं थी l कारण, उस समय के फ्रांस के राष्ट्रपति थे फ्रैंक होलांदे जिनकी एक फिल्म बनाने की कंपनी है ‘ रूज़ (rouge) इंटरनेशनल ‘ जिसका सञ्चालन उनकी फ़िल्मी कलाकार सहयोगी जूली गायेत करती हैं l इस कंपनी में अनिल अम्बानी ने पहले से ही भारी निवेश किया हुआ है l अब आप सोचें की क्या अम्बानी को किसी और के सहायता की आवश्यकता है जब उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति की ही कंपनी में निवेश कर रखा हो?

दूसरी बात, एचएएल के साथ जहाज बनाने की बात हो रही थी और अम्बानी के साथ कल – पुर्जे बनाने का अनुबंध हुआ है जिसमें राफेल के साथ फाल्कन और अन्य कई तरह के कल – पुर्जे भी बनेंगे l भारत सरकार के साथ अनुबंध में एक प्रमुख शर्त है की भारत में बने कल – पुर्जों का प्रयोग भारत आनेवाले जहाज़ों में नहीं होगा l

एचएएल एक ओईएम अर्थात ‘ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर’ है जिसके लिए कल – पुर्जे बनाना संभव नहीं है l दुनिया का कोई भी ओईएम कल – पुर्जे नहीं बनाता इसलिए नहीं की वो बना नहीं सकता बल्कि इसलिए की उसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जाएगी जो अंततः मुख्य सामान की कीमत को कई गुना बढ़ा देगी क्योंकि उनके ‘ओवरहेड्स’ बहुत ज्यादा होते हैं l इसीलिए सभी ओईएम छोटे उद्योगपतियों की सहायता से छोटी – छोटी एन्सिलेरी यूनिट स्थापित करवाती हैं, डिजाईन और गुणवत्ता नियंत्रण स्वयं का होता है और उत्पादन एन्सिलेरी यूनिट में होता है जिनके ओवरहेड्स नाममात्र के होते हैं ताकि कीमत को कम रखा जा सके l जहाज़ों की बात छोड़ दें, आप सिर्फ कार बनाने की फैक्ट्री में चले जायें, उस एक फैक्ट्री के आस पास सैकड़ों एन्सिलेरी यूनिट मिल जाएँगी जो उस कार के लिए कल – पुर्जे बनाती हैं l

2 – मात्र एक महीने पुरानी अम्बानी की कंपनी से किस अनुभव के आधार पर अनुबंध कराया गया ?

रक्षा क्षेत्र में अम्बानी परिवार काफी समय से है ये बात अलग है की वो जहाज नहीं बनाते, इसतरह, जहाज तो एचएएल भी नहीं बनाती l क्या एचएएल ने अपने बूते एक भी जहाज बनाया है ? एचएएल सिर्फ जहाज़ों के रखरखाव का कार्य करती है और इतना ही कर सकने में सक्षम है l जब भारत ने आजतक जहाज बनाये ही नहीं तो अनुभव का प्रश्न उठाना ही मूर्खतापूर्ण है l अम्बानी तो फिर भी रक्षा से जुड़े कई उपकरण बनाते हैं लेकिन टाटा, महिंद्रा, सैमटेल जैसे बाकी की 75 कम्पनियां क्या अनुभव रखती हैं? उन पर सवाल क्यों नहीं उठाये जा रहे ?

दरअसल, रिलायंस का दसौल्ट के साथ ऑफसेट अनुबंध एक बार 2012 में भी हो चुका था तब रिलायंस डिफेंस मुकेश अम्बानी के पास हुआ करता था लेकिन जब राहुल गाँधी सरकार ने राफेल खरीद को रद्द कर दिया तो रिलायंस का अनुबंध भी रद्द हो गया था l बाद में पारिवारिक बंटवारे में रक्षा क्षेत्र अनिल अम्बानी के पास आगया और जब मोदी सरकार ने राफेल खरीद को हरी झंडी दी तो वही 2012 का अनुबंध अनिल अम्बानी को हस्तांतरित हो गया l

अब आते हैं तकनीकी पर, बाकी के 75 ऑफसेट पार्टनर से दसौल्ट तय राशि का माल खरीद रहा है लेकिन रिलायंस के साथ वह एक जॉइंट वेंचर में फैक्ट्री की स्थापना कर रहा है जिसमें कल पुर्जों का निर्माण दसौल्ट की निगरानी में किया जायेगा l इस कंपनी में रिलायंस 51% और दसौल्ट 49% के पार्टनर हैं l नियमानुसार ऐसी सूरत में एक नयी कंपनी बनानी ही होती है जिसमें शेयर होल्डिंग, कंपनी ऑब्जेक्ट, मेमोरेंडम ऑफ़ एसोसिएशन, आर्टिकल ऑफ़ एसोसिएशन जैसे अनेकों दस्तावेज और हलफनामें सम्बंधित मंत्रालय में जमा कराने होते हैं l इसमें दूसरा कोई और विकल्प होता ही नहीं है l

3 – राफेल के लिए ज्यादा कीमत देकर अम्बानी को 30 हज़ार करोड़ का फ़ायदा पहुँचाया गया l

राहुल गाँधी के अनुसार उनकी सरकार ने 550 सौ करोड़ रूपए में एक राफेल जहाज का दाम तय किया था जिसे नरेन्द्र मोदी सरकार ने 1550 करोड़ में खरीदा l इस हिसाब से 36 जहाज का करीब 36 हज़ार करोड़ रूपए ज्यादा देना पड़ा जो की एक भ्रष्टाचार है और ये पैसा अनिल अम्बानी को गया l सनद रहे की दसौल्ट के साथ कुल अनुबंध 55 हज़ार करोड़ का है l

पहली बात, दुनिया के किसी भी सौदे में 65% की दलाली संभव ही नहीं है l दूसरी बात, ये दो देशों के बीच हुआ सौदा था जिसमें किसी भी तरह की दलाली या काले पैसे के खेल के लिए कोई गुंजाईश बचती ही नहीं है l एक बार को मान लिया की 36 हज़ार करोड़ ज्यादा दिये तो सारा फ़ायदा अनिल अम्बानी को ही कैसे पहुंचा? टाटा, महिंद्रा, सैमटेल जैसे अन्य 70 को कैसे नहीं पहुंचा? यहाँ बता दें की, दसौल्ट और अम्बानी का कुल अनुबंध मात्र 800 करोड़ का ही है l 

दरअसल, राहुल गाँधी सरकार ‘फोर्थ जनरेशन फाइटर जेट’ खरीदना चाहती थी जो की पुरानी तकनीकी है जिसमें केवल जहाज की कीमत 550 करोड़ है और हथियारों की सुविधा के साथ कीमत बढती जाती है l जैसी मारक और निगरानी की क्षमता आप जोड़ते जायेंगे कीमत उसी अनुपात में बढती जाएगी l अब राहुल गाँधी ही बेहतर बता सकते हैं की 550 करोड़ का 2 सीटर जहाज खरीद कर वो करना क्या चाहते थे? क्या मां – बेटा उसमें बैठकर दुनिया की सैर पर जाना चाहते थे? क्योंकि बिना हथियारों की सुविधा के वह जहाज युद्ध के लायक तो था नहीं l चूंकि, राहुल गाँधी सरकार फोर्थ जनरेशन जेट खरीदने गयी थी तो यह तय है की कीमत अवश्य ही ज्यादा रही होगी l अर्थात, राहुल गाँधी रक्षा से जुड़े अतिसंवेदनशील मामले में देश की जनता से झूठ बोलकर उसे भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं l  यहाँ कई महवपूर्ण सवाल उठते हैं की जब फिफ्थ जनरेशन उपलब्ध था तो फोर्थ जनरेशन जेट खरीदने के पीछे क्या उद्देश्य था? सेना को कमजोर बना कर रखने के पीछे कांग्रेस गिरोह का क्या उद्देश्य है? 

नरेन्द्र मोदी सरकार ने आधुनिकतम ‘फिफ्थ जनरेशन जेट’ को खरीदा है जो विश्व की सर्वोत्तम मारक और निगरानी क्षमता से सुसज्जित है और CAG की रिपोर्ट के अनुसार पिछली सरकार द्वारा तय कीमत से भी कम कीमत पर खरीदी गयी है l यही कारण है की सर्वोच्च न्यायलय ने भी सभी पहलुओं का बारीकी से अध्ययन करने के बाद इस अनुबंध को ‘क्लीन चिट’ दे दी l

यहाँ ध्यान देने योग्य बात है की जुलाई 2010 में एक यूरो 59.81 रुपये के बराबर था जबकि जुलाई 2017 में एक यूरो 74.33 रूपए के बराबर था l          

4  – राहुल गाँधी 126 जहाज खरीद रहे थे जबकि नरेन्द्र मोदी ने सिर्फ 36 जहाज खरीदे l

राहुल गाँधी सरकार ने 126 राफेल जेट का सौदा किया जिसमें 18 जहाज फ़्रांस से आने थे और बाकी 108 जहाज भारत में एचएएल के द्वारा बनाये जाने थे l लेकिन ये मामला दो बिन्दुओं पर फंस गया जिसके कारण राहुल गाँधी सरकार ने दसौल्ट के साथ अनुबंध रद्द कर दिया l पहला बिंदु था समय सीमा को लेकर, दरअसल, एचएएल उत्पादन के लिए बहुत ज्यादा समय मांग रही थी जिसके लिए न तो सेना तैयार नहीं थी और न ही व्यवहारिक था l दूसरा बिंदु था गुणवत्ता को लेकर, यहाँ सरकार दसौल्ट कम्पनी पर यह शर्त लगा रही थी की जो जहाज एचएएल में बनेंगे उसकी गुणवत्ता की गारंटी दसौल्ट को लेनी होगी और ये सुनिश्चित करना होगा की एचएएल द्वारा बनाये गए जहाज किसी भी मायेने में फ़्रांस में बने जहाज से कम नहीं होंगे l दसौल्ट ने ये कह कर इनकार कर दिया की आपकी फैक्ट्री में बने उत्पाद की गारंटी फ़्रांस में बैठा दसौल्ट कैसे ले सकता है और गुणवत्ता की गारंटी एचएएल को लेनी चाहिए l अंततः फरवरी 2014 में तत्कालीन रक्षामंत्री ए के एंटोनी ने कहा की उनके पास राफेल खरीदने के लिए फण्ड नहीं है क्योंकि कई और अपेक्षाकृत महत्वपूर्ण समस्याएं सामने हैं और अब ये खरीद अगले वित्तीय वर्ष में देखी जाएगी l

दरअसल, भगोड़े हथियारों के दलाल और जीजा – साले के यार संजय भंडारी की OIS नाम से कई कम्पनियां हैं और ये माना जाता है की संजय भंडारी तो मुखौटा मात्र है और असली मालिक जीजा साले ही हैं l योजना ये थी की एक बार गुणवत्ता की गारंटी दसौल्ट ले लेगा तो सेना भी खामोश रहेगी और जैसे ही एचएएल में निर्माण की प्रक्रिया आरम्भ होगी तो कल – पुर्जों की सप्लाई का सारा अनुबंध OIS को दे दिया जायेगा फिर अरबों – खरबों की कमाई का रास्ता साफ़ l क्योंकि एचएएल एक जहाज कितने में बनाएगा ये सवाल कोई भी नहीं पूछेगा इसलिए कल – पुर्जों की मनमानी कीमत रखवाई जाएगी l लेकिन दसौल्ट ने इन लुटेरों के अरमानों पर पानी फेर दिया और इसी से छुब्द होकर राहुल गाँधी सरकार ने दसौल्ट का अनुबंध रद्द कर दिया और अपने तथाकथित मामा क्रिस्टियन मिशेल (भारत की जेल में हैं) के जरिये जर्मनी की यूरो फाइटर से बात शुरू कर दी l     

5 - राहुल गाँधी की समस्या

राहुल गाँधी राफेल मुद्दे पर अनेकों समस्याओं में घिरे हुए हैं यही कारण है की वह दिनभर बदहवासी में बकवास किये जा रहे हैं l कल – पुर्जों की सप्लाई में मोटा माल खाने से वंचित रह जाना तो एक प्रमुख कारण है ही, इसके आलावा, उनके कुछ विदेशी मित्रों, जो दुर्भाग्य से भारत के दुश्मन हैं, को राफेल के शक्ति की जानकारी चाहिए ताकि वो अपनी तैयारी उस स्तर की कर सकें l यह दबाव भी राहुल गाँधी के बर्ताव में साफ़ झलकता है l राहुल गाँधी, प्रियंका और रॉबर्ट वाड्रा, बिना सरकार को सूचना दिये जोकि आवश्यक है, रात के अँधेरे में जाकर चीन के राजदूत से मिलते हैं, खबर सार्वजनिक होती है तो इनकार करते हैं और जब फोटो आ जाती है तो स्वीकार कर लेते है l ये घटना अपनेआप में बहुत कुछ कहती है l आश्चर्यजनक ये है की प्रियंका और रॉबर्ट वाड्रा किस हैसियत से चीनी राजदूत से मिलने जाते हैं?

DE6wEuZVwAA49Ve

सवाल है की, जब सरकार में थे तो पुरानी तकनीकी का जहाज खरीदने की कोशिश और जब सरकार से बाहर हैं तो वर्तमान सरकार पर तरह – तरह के दबाव बनाना ताकि मारक क्षमता की जानकारी सार्वजनिक हो सके ये बताने के लिए पर्याप्त है की राहुल गाँधी और उनके गिरोह पर राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में विश्वास नहीं किया जा सकता l

अगर आपके चहेते नेता की पूँजी और संपत्ति विदेशों में है, तो निश्चित है की, वो अवैध रूप से ही गयी होगी और, ये भी निश्चित है की, इसकी जानकारी शत्रु देश के गुप्तचर विभागों को भी होगी और, ये भी निश्चित है की, ये गुप्तचर विभाग ऐसे नेताओं का भयादोहन (ब्लैकमेल) करके ही रहेंगे और, ये भी निश्चित है की, इन नेताओं के पास राष्ट्रद्रोह के अतिरिक्त और कोई मार्ग शेष नहीं होगा l इसलिए अपने 'मत' की ताकत से ऐसे नेताओं को राजनीति से बाहर का मार्ग दिखाइए l

सविनय निवेदन: इस लेख पर अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए कृपया हमारे फेसबुक एवं ट्विटर के सम्बंधित पोस्ट पर आगमन करें I