क्रतु मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषधि मैं हूँ, मन्त्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ और हवन रूप क्रिया भी मैं ही हूँ l
मैं ही सूर्यरूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ i हे अर्जुन ! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत – असत भी मैं ही हूँ l
मैं सब भूतोंके ह्रदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा सम्पूर्ण भूतों का आदि मध्य और अंत भी मैं ही हूँ l
मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु और ज्योतियों में किरणोंवाला सूर्य हूँ l मैं उनचास वायुदेवताओं का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा हूँ l
मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवोंमें इंद्र हूँ, इन्द्रियोंमें मन हूँ और भूतप्राणियों की चेतना अर्थात् जीवनशक्ति हूँ l
मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसोंमें धन का स्वामी कुबेर हूँ l मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और शिखर वाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ l
पुरोहितों में मुखिया बृहस्पति मुझको जान l हे पार्थ ! मैं सेनापतियों में स्कन्द और जलाशयों में समुद्र हूँ l
मैं महर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर अर्थात् ओंकार हूँ l सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों में हिमालय पहाड़ हूँ l
मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष, देवर्षियों में नारद मुनि, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि हूँ l
घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न होनेवाला उच्चैःश्रवा नामक घोड़ा, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत नामक हाथी और मनुष्यों में राजा मुझको जान l
मैं शस्त्रों में वज्र और गौओमें कामधेनु हूँ l शास्त्रोक्त रीति से संतानकी उत्पत्ति का हेतु कामदेव हूँ और सर्पोंमें सर्पराज वासुकि हूँ l
मैं नागों में शेषनाग और जलचरों का अधिपति वरुण देवता हूँ और पितरों में अर्यमा नामक पितर तथा शासन करनेवालों में यमराज मैं हूँ l
मैं दैत्यों में प्रहलाद और गणना करनेवालों का समय हूँ तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में मैं गरुड़ हूँ l
मैं पवित्र करनेवालों में वायु और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ तथा मछलियों में मगर हूँ और नदियों में श्री गंगाजी हूँ l
सृष्टियों का आदि, अंत तथा मध्य भी मैं ही हूँ l
मैं विद्याओं में अध्यात्मविद्या और परस्पर विवाद करनेवालों का तत्व निर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूँ l
मैं अक्षरों में अकार हूँ l
अक्षयकाल अर्थात काल का भी महाकाल तथा सब ओर मुखवाला विराटस्वरुप सबका धारण – पोषण करनेवाला भी मैं ही हूँ l
मैं सबका नाश करनेवाला मृत्यु और उत्पन्न होनेवालों का उत्पत्ति हेतु हूँ तथा स्त्रियों में कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा हूँ l
गायन करनेयोग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छंदों में गायत्री छंद हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसंत मैं हूँ l
मैं छल करनेवालों में जूआ और प्रभावशाली पुरुषों का प्रभाव हूँ l
जीतनेवालों का विजय, निश्चय करनेवालों का निश्चय और सात्विक पुरुषों का सात्विक भाव हूँ l
मैं पांडवों में अर्जुन, मुनियों में वेदव्यास और कवियों में शुक्राचार्य कवि भी मैं ही हूँ l
मैं दमन करनेवालों का दण्ड अर्थात् दमन की शक्ति हूँ l
मैं जीतने की इच्छावालों की नीति , गुप्त रखने योग्य भावों का रक्षक मौन और ज्ञानवानों का तत्वज्ञान मैं ही हूँ l
हे अर्जुन ! मैं वासुदेव ही सृष्टि के उत्पत्ति का कारण हूँ i मेरे विस्तार का तो अंत ही नहीं है l