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हिन्दू मुक्त भारत : सामाजिक षड़यंत्र
26 जनवरी 2020 ( 00:30 )
जिन धार्मिक स्थलों और संगठनों को विदेशियों से चंदे के रूप में मोटा पैसा आता है, वो और उनका समाज, अपने को भारतीय और भारत के प्रति निष्ठावान कैसे कह सकता है ?
सामाजिक षड़यंत्र का अर्थ है की षड़यंत्र में समाज की संलिप्तता l हिन्दू मुक्त भारत के इस सामाजिक षड़यंत्र के मुख्य तीन घटक हैं l पहला इस्लामी विस्तारवाद, दूसरा ईसाई विस्तारवाद और तीसरा वर्णसंकर हिन्दुओं का राष्ट्रद्रोह l पहले दो के साथ राष्ट्रद्रोह शब्द का प्रयोग इसलिए नहीं किया गया है क्योंकि वो दोनों ही विदेशी आस्थाएं हैं इसलिए भारत से प्रेम की अपेक्षा रखना उनके साथ अन्याय होगा l
धर्म के आधार पर 1947 में जब भारत को तोड़ा गया तो नरमपंथी एक ‘इस्लामी मुल्क’ के चक्कर में पाकिस्तान चले गए, किन्तु, चरमपंथी शेष भारत के सम्पूर्ण इस्लामीकरण अथवा ‘गजवा – ए – हिन्द’ के षड्यंत्र में यहीं रुक गए l आप ध्यान देंगे तो पायेंगे की राज्य कोई भी हो, जिला कोई भी हो वहाँ पर हर दस साल में मस्जिदों की संख्या बढ़ जाती है l समस्या मस्जिद बनाने में नहीं है, किन्तु, जिस प्रकार से आवासीय घरों को मस्जिदों में परिवर्तित किया जा रहा है वह चिंतनीय है l चिंतनीय इसलिए है क्योंकि मस्जिदों का प्रयोग पूजा के लिए कम और होटल नियमों का उलंघन करते हुए ‘मुसाफिरखाने’ के रूप में ज्यादा होता है जिसमें अनजान लोग आकर शरण लेते हैं जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं होता l घुसपैठियों के लिए देश जलाना, आतंकियों की वकालत करना, सार्वजनिक स्थलों पर अराजकता फैला कर नमाज पढने बहाने एक मनोवैज्ञानिक प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास करना और अपनी उपस्थिति से भय का वातावरण बनाने की कोशिश के द्वारा यह समझाना की निष्ठा किधर है और मंशा क्या है l कश्मीर में मस्जिदों से अपमानजनक घोषणा करना की हिन्दू अपनी महिलाओं को छोड़ कर घाटी से चले जाएँ, बताने के लिए पर्याप्त है की इनकी बढती जनसँख्या में हिन्दुओं की कितनी दुर्दशा छिपी हुई है l भारत में ‘इस्लामी आतंकवाद’ मुस्लिम समाज की एक सच्चाई है जिससे पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता l
भारत में इस्लामिक विस्तार के षड़यंत्र को और बेहतर ढंग से समझने के लिए कृपया नीचे दिए लिंक को अवश्य पढ़ें l
मुस्लिम संगठनों और समाज से भी ज्यादा खतरनाक चर्चों और ईसाई मिशनरियों की भूमिका है l ये लोग ‘अच्छे बालक’ बने रहकर दीमक की तरह हिन्दू समाज और राष्ट्र को चाट रहे हैं l इन्होने तो ‘जोशुआ प्रोजेक्ट (JOSHUA PROJECT)’ के अंतर्गत धर्मांतरण का एक अभियान चला रखा है l सेवा की आड़ में ये लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ करते हैं l बात सिर्फ धर्मांतरण तक सीमित नहीं है बल्कि उत्तर-पूर्व से लेकर नक्सली और माओवादी आतंकवाद पूरी तरह से मिशनरियों द्वारा पोषित और संचालित है l आप जानकार हैरान होंगे की आधिकारिक रूप से घोषित ईसाईयों से ज्यादा संख्या उन अघोषित ईसाईयों की है जो ईसाई तो हैं किन्तु अपने को हिन्दू कहते हैं ताकि सरकारी लाभ भी ले सकें और दुष्प्रचार के लिए एक विश्वसनीय वाणी भी बने रह सकें l इनको ‘क्रिप्टो – क्रिस्चियन’ कहते हैं l
उपरोक्त दोनों गिरोहों के सबसे बड़े सहायक वो ‘वर्णसंकर हिन्दू’ हैं जिन्हें आप वामपंथी भी कह सकते हैं l एक बात याद रखियेगा की भारत में सिर्फ दो पंथ हैं – एक दक्षिणपंथ और दूसरा वामपंथ l जो दक्षिणपंथी नहीं हैं वो सभी वामपंथी ही हैं लेकिन देश को भ्रमित करने के लिए अनेको छद्दम विचारधाराओं का निर्माण करके आपके सामने आते हैं लेकिन हैं वामपंथी ही और उद्देश्य भी वही है – भारत का विनाश l इनका मुख्य उद्देश्य हिन्दू समाज को जातियों में विभाजित करना, जातिय वैमस्य बढ़ाना ताकि सामाजिक एकता की संभावना न रहे और फिर उनमें अपनी संस्कृति के प्रति हीन भावना का निर्माण करना l ये वर्णसंकर प्रजाति आपको जीवन के हर क्षेत्र में मिलेगी जैसे – राजनीति, मीडिया, शिक्षा, कला, बॉलीवुड आदि l अपने उद्देश्य की पूर्ती के लिए ये वर्णसंकर प्रजाति जातिय वैमनस्य बढाने वाली झूठी कहानियां प्रचारित करती हैं l बोलने की स्वतंत्रता के नाम पर सभी सनातन प्रतीकों का अपमान करती हैं l सनातन देवी – देवताओं के अश्लील और अभद्र फोटो, कार्टून और कहानियां प्रचारित करती हैं l इस कार्य में वर्णसंकर प्रजाति की ‘नगरवधुएं’ प्रमुखता और मुखरता से संलिप्त हैं जो सोशल मीडिया के मंच पर ‘सत्यापित सम्मान’ लिए घूम रही हैं l
इन तीनों गिरोहों को सऊदी अरब और पश्चिमी देशों से भरपूर पैसा आता है जिसका उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों में किया जाता है l
वृहद्द हिन्दू समाज सदियों से अपने ही भाई – बंधुओं से घृणा करने के नये – नये बहानों का निर्माण करता रहता है l कभी जातिवाद का बहाना तो कभी क्षेत्रवाद, भाषावाद l जब कुछ समझ नहीं आता तो सेक्युलर मोतियाबिंद की बिमारी का बहाना l आपसी वैमनस्य के कारण, हिन्दू, अलग – अलग मार खाता रहा है किन्तु समझ आजतक नहीं आई l तात्कालिक लाभ की छुद्र मानसिकता भी समाज के बिखराव का एक बहुत बड़ा कारण रहा है l सोच कर देखिए की ईसाईयों के 150 देश आज से 2500 साल पहले जब ईसाईयत नहीं था तो किस संस्कृति और पूजा पद्धति के अनुयायी थे? मुसलमानों के 56 देश आज से 1500 साल पहले जब इस्लाम नहीं था तब किस संस्कृति और पूजा पद्धति के अनुयायी थे ? वो सब निष्क्रिय, अकर्मण्य और छुद्र मानसिकता के थे तथा तात्कालिक लाभ के लिए दूरगामी परिणामों के प्रति उदासीन थे इसलिए मिट गए l अगर हम भी अपनी संस्कृति, सभ्यता और आने वाली पीढ़ी का यही भविष्य देखना नहीं चाहते हैं तो मतभेदों को भुला कर एक सूत्र में बंधना होगा l
नीचे केसरिया रंग में एक भविष्यवाणी करने का जोखिम पूरी गंभीरता से उठा रहा हूँ -
“ आज से पंद्रह साल बाद और बीस साल के अन्दर के पांच साल में कभी भी एकबार 'जोशुआ' और 'गजवा' के सिपाही लद्दाख से कन्याकुमारी और सोमनाथ से कामाख्या तक भारत को भयानक रूप से जलाएंगे l वह शुरूआती क्षति करेंगे फिर जवाबी कार्यवाही के बाद अगले 500 साल तक दोनों मोर्चों पर पूरी शांति रहेगी l शुरुआती क्षति कितनी होगी ये इसबात पर निर्भर करेगा की हम कितने तैयार और एकजुट हैं l जितनी कम तैयारी और एकजुटता होगी क्षति उतनी ही भयावह होगी l वर्णसंकर प्रजाति इस आग में सबसे पहले जलेगी l ”
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